- बड़े शौक से घर में गणपति को लाते है लोग
एक दिन उसी को फिर पानी में बहाते है लोग !!बड़ी अजीब देखी श्रद्धा लोगो की इस जमाने में
कभी सर झुकाते, कभी पैरो में ठुकराते है लोग !!पहले तो करते है पूजा चढ़ाकर सुगनध पुष्पमाल
फिर कर विसर्जन उनका खुशिया मनाते है लोग !!पांडालों के इर्द गिर्द घुमते रहते बच्चे भूखे नंगे
कूड़े में कन्द-मूल और पानी में दूध बहाते है लोग !!श्रद्धा की बात क्या कीजे “धर्म” इस कलयुगी दुनिया में
इंसानो पर जुर्म और मूर्तियों में आभूषण चढ़ाते है लोग !!!
!
!
डी. के. निवातियाँ _______!!!
समाज को सीख देती एक अच्छी कविता …….
हार्दिक आभार मित्र !!
अति सुन्दर कविता धर्मेद्र जी। “पानी में दूध बहाते हैं लोग” बहुत अच्छा कहा है आपने। मेरी भी एक रचना “एक अनदेखा सच” है इसी सम्बन्ध में, ज़रूर पढियेगा ! धन्यवाद !
हार्दिक आभार मित्र !!
अति सुन्दर एवं सोचने के लिए मजबूर करती सत्यपरक रचना.
हार्दिक आभार मित्र !!
हम अपने रिवाजो़ को धर्म कहें या अधर्म. ?we are too ritualistic. आप की कोशिश – समाज कोआइना दिखाने की सफ़ल हो ।
शुक्रिया, बिमला जी !!
Bahut badhiya line nivatiya ji..
धन्यवाद बंधू !!