सुबह की सैर के बाद जब घर वापस जाने को हुआ तो कुछ थकान सी लगी। सोचा रिक्शा कर लूँ।
रिक्शे वाला भी मेरी ही तरह अधेड़ उम्र का निकला और धीरे धीरे रिक्शा हांकने लगा। घर के पास वाले मोड़ पर पहुंचा ही था कि देखा मंदिर की नाली के आगे बच्चों की एक लाइन लगी थी।
तन पर जिनके फटे चीथड़े थे और हांथों में कुछ गहरे बर्तन जैसा था। सब बड़ी ही उम्मीद भरी नज़रों से नाली को निहार रहे थे।
फिर यकलख़्त याद पड़ा… आज तो भोलेनाथ का विवाह है !!!
— अमिताभ ‘आलेख’
संवेदनहीन समाज पर चोट करती शानदार अभिव्यक्ति !!
बहुत अच्छे अमिताभ जी !!
प्रोत्साहन एवं तारीफ़ के लिए शुक्रिया धर्मेन्द्र जी ।
मन को झकझोरने वाला दृश्य दिखाती हैं ये लाइनें ।
अनेक अनेक धन्यवाद बिमला जी ।