चलो एक ऐसा जहाँ हम बनाऐं..
मोहब्बत करेँ सिर्फ मोहब्बत फैलाएँ..
क्योँ एक दूसरे को गुनेहगार ठहराएँ
कोशिश करोगे तो बदल ही तुम दोगे
हर रास्ते को नया नाम दोगे
किसको मिली है मंजिलेँ यहाँ पर
चलो हर किसी को मंजिल दिलाएँ…
मोहब्बत करेँ और मोहब्बत फैलाएं…
वादा करो खुद से कि टूटने ना दोगे
कोशिश मेरी तुम बर्बाद ना करोगे
साथ मेरे हो तो साथ ही रहोगे
मुश्किल भी वक़्त हो तो यही तुम कहोगे
चलो आज तुमको एक रास्ता दिखाएँ…
मोहब्बत करें और मोहब्बत फैलाएँ…
जुगनू बने तुमको जुगनू बनाएँ
तेरे साथ हरदम रोशनी फैलाएँ
कितना भी अंधेरा मिले इस जहाँ को
जीते रहो तुम सींचो इस जहाँ को
रोते हुए को हंसना सिखाऍ
चलो एक ऐसा जहाँ हम बनाएँ….
मोहब्बत करेँ और मोहब्बत फैलाएं……
अच्छे भाव व अच्छी रचना
बहुत बहुत शुक्रिया आप का……..
अच्छी रचना
दोसरी लाइन मे सिर्फ की जगह और का उपयोग ज्यादा अच्छा रहेगा ….
शुक्रिया अनुज जी
आपने सलाह दिया।
तो हमने अमल कर लिया।
सिर्फ को सिर्फ नहीं रहने दिया।
उसे और कर दिया।।।।
एक शानदार प्रेरक रचना !!
बहुत बहुत शुक्रिया आपका……