लहू का यहाँ पर मोल नहीं,
पर पानी का मोल है।
लोगोँ मेँ मोहब्बत है ही नहीँ,
पर नफरत का मोल है।
कितना गंदा माहौल है। कितना गंदा माहौल है।
जीते जी लोगोँ का मोल नहीँ,
पर मुर्दों का मोल है।
साथी की अहमियत है ही नहीँ,
पर बिछड़ने का मोल है।
कितना गंदा माहौल है। कितना गंदा माहौल है।
माँ बाप की फिक्र करते हैँ कौन,
बस अपने मतलब का मोल है।
सच बात यहाँ करता है कौन,
झूठीं बातोँ का मोल है।
कितना गंदा माहौल है। कितना गंदा माहौल है।
मतलब से जुड़े हैँ लोग यहाँ,
सिर्फ मकसद का मोल है।
मंजिल से किसी को फर्क नहीँ,
पर रास्तों का मोल है।
कितना गंदा माहौल है। कितना गंदा माहौल है।
खुदा को भी लोगोँ ने छोड़ा ही नहीँ,
अब तो जन्नत का भी मोल है।
इंसानियत का लोगोँ को ख्याल नहीँ,
पर हैवानियत का मोल है।
कितना गंदा माहौल है। कितना गंदा माहौल है।
badhiya hai. achhi abhivyakti hai aap ki.
बहुत बहुत शुक्रिया आपका….
परचम अपना- अपना लहराए रखिये
सच राह सफ़र निराला चलते चलिए|
शुक्रिया ज़नाब।।