……………….MUKTAK…………….
(1) नज़्म नज़र कुछ कहती है, साँसें खण्डर हो ढहतीं हैं |
घुटते तन में क्यों पिंजर बंद, यादें तेरी बस रहती हैं ||
(2) नज़राना नाराज़ी का, अल्फ़ाज़ नहीं कोई राज़ी सा ।
छूटा अम्बर पंखों से मेरे, सपना टूटा परवाज़ी का ।।
(3) ज़ख्म दबा कोई आँखों में, सिफ़र है धड़कन साँसों में |
उसको रानी का ताज नवाज़न, मैं जोकर बन बैठा ताशों में ||
(4) शब में साया दिखता ही नहीं, खुद से ये तन मिटता ही नहीं |
मय में जो देखू अक्श कभी, “मैं” से तो “तू” हटता ही नहीं ||
By Roshan Soni
Very nice couplets
BAHOT AABHAR AAPKA SHISHIR JI.