कौन कहता है चाहतें बेकार जाती हैं
दिल से करो एक दिन ये रंग जरूर लाती हैं
कुछ पाने को तो करना पड़ता है इन्तजार
आखिर युहीं मिलता नहीं है इश्क में करार
मिलके जिसे ये जिंदगानी मुस्कराती है
ऐसी ख़ुशी जीवन में किस्मतों से आती है
थाम लो न जाने दो अपने से उसको दूर
चारों तरफ होगा तुम्हारे बस ख़ुदा का नूर.
शिशिर “मधुकर”
अति सुन्दर ,भावपूर्ण कविता ।
आपके उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद बिमला जी
अति सुन्दर, भावपूर्ण रचना !!
Thank you Nivetiya ji
थी वो रफ्तार के लम्हे में ताकत
दरिया तक ओ पहुचाये |
तुम गए चाँद तलक महज
हम खुदा तक पहुंचे |
हुश्न दुनियां के लोगों में बहुत
ऐसा नहीं कोई अदा तक पहुंचे |
हाथ तो उठा मगर दिल भी
दुआ तक पहुंचे ||
Sukhmangal ji what an appreciation by you of the feelings ecpressed in my poem. Thanks a lot.