तुझे समझना बहुत मुश्किल है
तेरे खेल भी निराले हैं
बंधनों से खुल रहे थे जो पैर
तूने फिर से बंधनों में डाले हैं.
विधि में क्या है सिर्फ तू जानता है
मुझको जो है करना वो पहचानता है
इसलिए मुझे तो सब स्वीकार है
मैं तो ये मानूं मुझ पर तेरा उपकार है.
बस एक विनती तुझसे करता हूँ सदा
तू एक पल भी मुझसे होना ना जुदा
गर इस सफर में तू न मेरे पास होगा
जीवन की हर सच्चाई का कैसे मुझे एहसास होगा.
शिशिर “मधुकर”
एहसास दिलाती एक अच्छी कविता …..
Thanks Anuj ji for appreciation
स्वंय को संवारती एक अच्छी पथ प्रदर्शक कविता !!
Thank you very.much
सुन्दर भाव ,सब करनेवाला हमें कठपुतलिओं सा नाचता रहता है उसकी रज़ा में ही हमारी रज़ा होनी चाहिए
धन्यवाद किरण जी