वक्त से लड़ना छोड़ दिया है हमने यारों
अब तो हम हर हाल में खुश रहते हैं प्यारों.
सोचा था जो चाहेंगे पा लेंगे हम तो
खुशियों की सौगात मिलेगी छोड़ के गम को
जीवन की हर ऊंचाई हम चढ़ जाएंगे
छोड़ के पीछे हर मजबूरी बढ़ जाएंगे
लेकिन वक्त ने हमको अपना रूप दिखाया
मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूँ अहसास कराया
वक्त अगर है साथ हारी बाजी तुम जीतो
नहीं अगर ये साथ जीती बाजी तुम हारो
वक्त से लड़ना छोड़ दिया है हमने यारों
अब तो हम हर हाल में खुश रहते हैं प्यारों.
कहने को तो रोज चमकते चाँद सितारे
अविरत अपनी धुन में बहते नदियां के धारे
रोज बिखरती पूरब में सूरज की आभा
जवाँ दिलों में देखो सच्चा प्यार है जागा
वक्त ने चाहा देखो फिर नई सुबह हुई है
इस बगिया की साड़ी कलियाँ खिली हुई हैं
वक्त अगर ना चाहे तो बदल ना बरसे
जीवन की ये बात समझ लो ओ मतवारों.
वक्त से लड़ना छोड़ दिया है हमने यारों
अब तो हम हर हाल में खुश रहते हैं प्यारों.
शिशिर “मधुकर”
अच्छी रचना ……………..!!
Thanks Nivetiya Ji for kind words
एक खूबसूरत रचना।।।।।।
Dr. Mobin, Thank you very much for your appreciation. I am extremely sorry for the delayed response.
मधुकर जी अपकी रचना खुबरसूरत व प्रभावशाली है…………!
प्रिय अस्मा, आपकी तारीफ़ का bahut bahut शुक्रिया.