हाँ तुम्हारा साथ ही तो बंधन है सबसे बड़ा
जिसमे भूल जाता हूँ मै कि मैं क्या हूँ?
अब मुझे क्रोध भी आता नहीं है नियति पर
जो बार बार मुझे अकेला करती है
अब मैं समझने लगा हूँ उसकी ये मंशा
कि मैं समझूँ कि मैं क्या हूँ?
बार बार मिलने बिछड़ने का दुःख भी
अब मुझे नहीं कचोटता क्योंकि
जानता हूँ मैं कि कुंदन बनना है मुझे
बार बार लपटों में यूँ जाने के बाद.
शिशिर “मधुकर”
शिशिर जी आप का नाम भी रचनाकारों की लिस्ट मे सामिल करिये !
Nice line
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Bilkul sahi kaha sir aapne…. Kundan hi banne ke liye bahut muskilon ka samna karna padta hai
Thanks Ankita for reading and commenting.