दूर – अन्धेरे में चलते-चलते
जब कभी कोई चिन्गारी-
जुगनू सी जल उठती है-
घन्टों से अपलक टिकी-
मेरी तन्त्रा को – एक
सुखमय झटका सा दे जाती है ।
क्षुब्ध तन्त्रा के तार टूट जाते हैं –
पल में -फिर जुड़ जाते हैं-
इक ऐसे चिरसिमृत क्षण से
जिस की मात्र कल्पना –
मधुर सी सिहरन
भर जाती है -तन में, मन में ।
पल में अन्धेरे छट जाते हैं –
आंसू शबनम बन जाते ,
सन्ध्या ढलते सूरज में –
सुबह की लालिमा भर जाते
बीते दो पल विमल स्नेह के
जीवन डगर सजा जाते ।
. — विमल
(बिमला ढिल्लन)
सुन्दर अतीत का जीवन भर अहसास रहता है जो जीने की शक्ति देता है. कहने का सुन्दर अंदाज.
धन्यवाद शिशिर जी, आप की कविताएं भी दिल को छूने वाली हैं ।
धन्यवाद बिमला जी
बहुत ही सुन्दर रचना है ….
Thank you, Anuj ji