??तो खिले चमन??
तर्ज-करवटे बदलतै रहे सारी रात हम
दो कदम मिल के चले,
सरहदो पे हम ।
तो खिले चमन तो खिले चमन।
तेरी नादानियों को,
भूला पाये हम।
देंगे इतना प्यार तुझे,
जिन्दगी होगी कम ।
किनारे रख जो पाये,
नफरतों का रंग,
तो खिले चमन
तो खिले चमन |
नफरतों कि ये हवा ,
सरहदों से दुर हो,
आओ ऐसा कर्म करें,
जिस पे खुद गुरुर हो।
जिस दिन होगा,
पुरा ये सपन,
तो खिले चमन ।
तो खिले चमन ।
जंग से कौन किसको ,
जीत पाया है ।
सिकंदर ना संग कुछ,
ले जा पाया है ।।
कुछ ना होगा हासिल ,
जान ले जो हम,
तो खिले चमन ।
तो खिले चमन ।।
उजडे हुए गुलशन को,
आजा तु सजा ले ।
एक बार दोस्ती का ,
हाथ तु बढा दे ।
फैल जाये महकी हवा,
मुस्करा दे वतन ।
तो खिले चमन ।
तो खिले चमन ।।
चलता रहे दुर तलक,
दौस्ती का कारवाँ ।
हो ये जमीं अपनी,
अपना हो ये आसमाँ।।
जाने कब होगा ,
“अनमोल” ये मिलन ।
तो खिले चमन ।
तो खिले चमन ।।
गीतकार-अनमोल तिवारी “कान्हा”
मित्रों कैसा लगा आपको यह गीत? ज़रूर बताईगा,
आपके कमेन्ट मुझे और अच्छा लिखने हेतु प्रेरित करेंगे ।
अतः आप अवश्य प्रतिक्रिया दे
स्वागत आप सभी साहित्य रसिकों का
गीत अच्छी है ,,
Juber साहब बहुत -बहुत शुक्रिया , आपने अपने बहुमूल्य विचार साझा कर मुझे साहित्य के प्रति प्रोत्साहित किया , आपके इस आशीर्वाद का हृदय से स्वागत
सुन्दर रचना ….!!
आदरणीय निवातियाँ डी, के जी हृदय से आभार