सूरज को तो जैसे तैसे ढो लेते है
पर चाँद संभले नहीं संभलता है
रातभर कतरा कतरा कंबख्त
तेरी यादे जहन पर मलता है
डरावनी परछाईयों पर नाचता
काला सा चिराग ख़लता है
बुझी आँखों के कोनों में से
उम्मीदों का धुआ निकलता है
नींद को कुरेदकर मनहूस सपना
बेवजह करवट बदलता है
और जज़बातों का बेगुनाह शोर
सिसकती ख़ामोशी में पलता है
थका हारा भोर का तारा
रोज़ फिर सूरज से मिलता है
तनहा रात का साथी मेरा, शायद
मेरी फरियाद कर ही ढलता है
– अमोल गिरीश बक्षी
बेहतरीन कविता धन्यवाद
धन्यवाद, विराटजी
Very nice feeling’s expression
Thank you, Shishirji
सुंदर अभिव्यक्ति !!
Awesome poetry i also write poetry. My poetry page on fb Astha gangwar poetries and song lyrics.
Hindi sahitya wathsup group pe aap ka svagat hai……joining ke liye aap ka mob..n. Den….
My no. Is 9158688418