कुछ ऐसे भी सपने है, जिनकी दास्तां अधूरी है
मंज़िलों से इनमें बस, कुछ ही कदम की दूरी है
कदम तो थमते नहीं पर फ़ासले बढ रहे है
वक्त की मिट्टी तले हौसले गढ रहे है
छोटे से ही थे, पर अब और भी सिकुड गए है
छत की आस में दीवारों से रंग उड गए है
नई उम्मीद से रोज़ निकलते अपने घर से है
ऐसे कई करोड़ो सपने एक मुस्कान को तरसे है
भरा पेट, एक आशियाँ और मुट्ठीभर खुशी
ज़रूरतों की किस्मत में सपनों की बेबसी
फिर भी ज़िन्दा रहने की इनकी आदत बहुत बुरी है
कई ऐसे सपने है, जिन की दास्तां अधूरी है
– अमोल गिरीश बक्षी
Poem dedcribes life truth
Ji Dhanyawad.. Badkismati se yehi zindagi ki sachhai hai..