पहले जब हम खत लिखते थे
सोच कर अपना मत लिखते थे
अब तो मेरा मत न तेरा मत
फ़ॉर्वर्डेड मेसेज ने की आफत
यूँ मेसेज से बनते बिगड़ते हैं
रिश्तों पे मोबाइल भरी पड़ते हैं
पहले खबरे होती थी तो बासी
पर साडी सच्ची, ख़ुशी या उदासी
अब पल में मौसम बदलता हैं
हर सन्देश नए रंग में ढलता हैं
सौंदर्य, हास्य कभी वीर रस
कभी देशभक्ति अनवरत
इस रंग में कभी उस रंग में
इंसान नहीं किसी के संग में
पल भर में स्नेह फिर गठबंधन
फेसबुक पर ही फिर आत्ममंथन
दिन में मुकदमा पल में गवाही
शाम तक तो रिश्तों की उगाही
नए संसाधन जोड़ देते पल में
बरसों के रिश्ते तोड़ देते पल में
गुस्सा, चिंता, प्यार जो भी लिखे
कोई सोच समझकर मुझे लिखे
कंक्रीट में वो मिटटी याद आती हैं
मुझे बचपन की वो चिठ्ठी भाटी हैं
पत्र की संजीदगी बखूबी पेश की है !! बहुत अच्छे !!
Dhanyavad