नव प्रभात , नव दिवस , चित्त शांत करती सूर्य किरणे
मंद पवन , नव स्फूर्ति ,धरा पर मेहँदी रचाई किसने
शीतल भोर में कलरव करते पक्षी , कल-कल करती सरिताएँ
दूर श्वेत श्यामल बदली , मन का शुन्यपन हटायें
हरी घास पर ओस की बूंदे , मनमोहक पुष्पों के उपवन
शुभ प्रभात की बेला में , प्रफुलित होता तन और मन
दूर मंदिर में घंटा ध्वनि ,भरती मन में आस्था दीप
पुष्प पर मधु पीते भँवरे ,सूर्य का उजाला तम लेता जीत
पर्वत की हिमाच्छादित चोटी पर ये स्वर्ण सी धूप सजाई किसने
मन को प्रफुलित करती, इतनी सुन्दर प्रकृति बनायीं किसने
हितेश कुमार शर्मा
प्रकृति के सौंदर्य का सुन्दर चित्रण
NICE POEM
प्राकृतिक सौंदर्य जैसा सौंदर्य कोई नहीं ,बहुत सुन्दर कविता है हिमेश जी .शब्दों का चयन अति सुन्दर किया है अपने
बहुत बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन के लिये