सुनो गौरैया
गौरैया क्या अब नहीं आओगी !
सोनचिरैया क्या शहर छोड़ जाओगी !!
भोर करती तुम्हारा इंतजार ,
पत्ते पत्ते को है तुमसे प्यार ,
बालसूर्य की तुमसे मुलाकात ,
उजला गीत न चहचहाओगी ,
गौरैया क्या अब नहीं आओगी !
सोनचिरैया क्या शहर छोड़ जाओगी !!
बचपन के तुमसे हैं गहरे नाते ,
आँगन में चावल डालना स्कूल जाते जाते ,
आँखे खुलते ही तुम्हारा फुदकना ,
शहरी बचपन सूना कर जाओगी
गौरैया क्या अब नहीं आओगी !
सोनचिरैया क्या शहर छोड़ जाओगी !!
माना शहरों के अंदाज बदल गए ,
इंसान को नए खिलोने मिल गए ,
पर तुम तो सदा की लक्ष्मी हो पाखी ,
नानी दादी की कहानियों से कैसे निकल पाओगी ,
गौरैया क्या अब नहीं आओगी !
सोनचिरैया क्या शहर छोड़ जाओगी !!
तुम हो तो पवन अमृत है , निर्मल है ,
तुम हो तो जीवन शुभ है , अविरल है ,
काश की इंसान को समझ आ जाए ,
दूषित वातावरण तुम न सह पाओगी ,
गौरैया क्या अब नहीं आओगी !
सोनचिरैया क्या शहर छोड़ जाओगी !!
डॉ दीपिका शर्मा
सुन्दर भाव
प्रदूषण की समस्या का गुम होती सोन चिरैया के वास्तविक रूपक से सुन्दर चित्रण
वर्तमान जीवन शैली पर सुन्दर प्रहार करती अच्छी रचना !!
बहुत खूब !!
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद