धन्य है कलयुग की धरती और धन्य है कलयुग का इंसान,
जहाँ पर ईमानदारी की नौका को चला रहे हैं बेईमान ,
जहाँ पर अपने ही अपनों के रिश्तों को करते हैं तार तार ,
और निर्दोषों के लहू से इस धरती का होता नित्य सिंगार ,
यहाँ इनके कर्मो के आगे भी शर्मा जाये सतयुग का हैवान ,
धन्य है कलयुग की धरती और धन्य है कलयुग का इंसान
मानते हैं जो अपने को भगवान से भी बहुत बड़ा ,
जिनकी हर करनी के आगे होता हैं इनका अहंकार खड़ा ,
दिल बदला ,करनी बदली और बदल गयी इनकी पहचान ,
धन्य है कलयुग की धरती और धन्य है कलयुग का इंसान ,
छोटे से छोटे स्वार्थ के लिए जो करते हैं अपने जमीर का सौदा ,
कोई फर्क नहीं पड़ता हैं इन्हे चाहे कितना बड़ा हो इनका अहौदा ,
धन , दौलत और नाम की चाह में, कहीं खो गया इनका ईमान ,
धन्य है कलयुग की धरती और धन्य है कलयुग का इंसान
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो वतन के हैं रखवाले
उन्ही की बदौलत होते हैं अंधरों में भी उजाले
और इन्ही की करनियों से बची हुई हैं भारतमाता की शान ,
धन्य हैं कलयुग की धरती और धन्य है कलयुग का इंसान
हितेश कुमार शर्मा
बढ़िया व्यंग
धन्यवाद
शानदार रचना !!
अच्छी रचना है हितेश जी
आप सभी का बहुत धन्यावाद