जब राह भटके तो रह दिखते,
सब के किए नई दीप जलते,
करे प्यार पर डांट लगते,
जीवन को हमारे साकार बनाते।
नई किरण यह लेकर आते,
मन का अंधेरा दूर भागते,
करे उजियाला नई राह बताते,
हमे उसपर चलना सिखलाते।
धर्म अपना ये निभाते,
हमे सत्य का पाठ पढ़ाते,
जीवन का संग्राम दिखते,
हमे उससे लड़ना सिखलाते।
करू मै श्रद्धा यही आस लगाऐ,
आशीर्वाद हमेशा आप का पाऐ
गुरु हो आप हम शिश झुकाऐ
धर्म अपना करे खुदाऐ।
——संदीप कुमार सिंह ।
संदीप जी आप अच्छा लिखते है , ऐसे ही लिखते रहिये ….
अशुद्धियों पे ध्यान देने की जरूरत है ,,,,,
ji jarur
Beautiful poem .sachha Guru jab mil jaye to apne aap ko bhagyashali samajhna chahiye .
ji aap ne sahi kaha mem.