जहाँ से कभी शुरू किया था सफर
आज उसी राह पर आकर रुका हूँ ….
जिक्र तेरा जहाँ न हो वो समां मेरा नहीं
आज ये बात मैं हर समां को बतलाता हूँ …
बिन तेरे मेरी ज़िन्दगी में कोई रवानी नहीं
अब खुद को हर बार यही एहसास दिलाता हूँ….
दूर तक कहीं भी तू नज़र आती नहीं
फिर भी मनचले मन को बहलाता-फुसलाता हूँ…
इक और दफा इंतज़ार करने में कोई हर्जाना नहीं
यही कहकर चंद पल ख़ामोशी को समेटता हूँ….
जिन बारिश की बूंदों में तू भींगा करती थी
आज उन्ही बूंदों को छूकर तुझे महसूस करता हूँ..
मुलाकात तो न जाने कितनों से होती है
पर हर शख्स में तेरी वाली बात नहीं
अब ये मानने से कतई नही कतराता हूँ ….
जब तू मेरे पास थी तो कभी कदर की नहीं
आज उसी रिश्ते की अमीरी के लिए तरसता हूँ…
जानते हुए भी की अब अजनबी हूँ मैं तेरे लिए
तेरे निगाहों में मेरे लिए अब कोई अपनापन नहीं
फिर भी इन सुखी नज़रों को तेरी आस में
हर रोज़ यूँही इन राहों में बिछाता हूँ ….
जहाँ से कभी शुरू किया था सफर
आज उसी राह पर आकर रुका हूँ ….
अच्छी रचना …….
nice……….