जीवन की दौड़ में हर कोई परेशान सा क्यूँ है
भीड़ बहुत है पर मंजर इतना सुनसान सा क्यूँ है
अपनी उलझनों का सबब जानते तो हैं सब
पर फिर भी हर शख्स इतना हैरान सा क्यूँ है
पहचाना होकर भी हर चेहरा अन्जान सा क्यूँ है
धड़कने तो हैं पर दिल इतना बेजान सा क्यूँ है
फरियाद करें तो किससे करें अब सोचने लगा हूँ
ऊपर बैठा खुदा भी दिखने लगा इन्सान सा क्यूँ है
Very nice thoughts and rythm
Thanks