।।ग़ज़ल।।प्यार की इस नाव पर।।
तू रहे खुश ,लुट रहा मैं ,आज तेरे नाँव पर ।।
दिल बिछाकर रो रहा हूँ गिर रहे इस भाव पर ।।
क्या पता इस कत्ल के बाद जिन्दा रह सकू मैं ।।
डगमगाता चल रहा हूँ प्यार की इस नाव पर ।।
मिल रहे थे हौसले जब तुम्हारा साथ था ।
अब नही मलहम लगाता है कोई इस घाव पर ।।
जा समझ में आ गया, यह रहम था प्यार न था ।।
पर कोई कांटा नही था गड़ रहा जो पाँव पर ।।
इस तरह फेंका है तुमने शाहिलो से दूर मुझको ।।
अब कभी न आ सकूगा राहे सकूँ की छाँव पर।।
देख तेरी रहनुमाई प्यार मैं करने लगा था ।।
थी चार दिन की जिंदगी वो भी लगा दी दाँव पर ।।
…. R.K.M