रहम कर कुछ तो ज़िन्दगी
जब वो नहीं है तो क्यू खामखा मुझको,
उसके खवाबों और यादों से सताती है,
तू तो चैन से सो जाती है, हमको फिर
कई दिनों तक नींद नहीं आती है
रहम कर,
रहम कर कुछ तो ज़िन्दगी
राह चलते चेहरों में तू उससे मुलाक़ात कराती है
तू रोज मुझसे ही मेरा क़त्ल कराती है
रहम कर कुछ तो ज़िन्दगी
तेरी हरकतों से ही,
घंटों सुलगती रहती है, उसकी यादों की आग इस सीने में,
बुझने पर उड़ती राख, आँख किरकिरा कर जाती है
या तो अब रहम कर या दफ़न कर मुझको
अब तेरी और सरदर्दी सहन नहीं हो पाती है
चंद साँसें और हैं चंद दिन और हैं
उसकी यादों से बड़ी तकलीफ़ होती है
रहम कर कुछ तो अब तू ज़िन्दगी
(chandrakant saraswat- writer)
Nice
bhut bhut dhnywad
दर्द की सुन्दर अभिव्यक्ति
dhnywad bhai
घंटों सुलगती रहती है, उसकी यादों की आग इस सीने में,
बुझने पर उड़ती राख, आँख किरकिरा कर जाती है………………………………..like it 🙂
धन्यवाद जी..प्यार है यह आपका.