ढूढ़ते हो तुम यहॉं जो अक्सर वही मिलता नहीं
आबो हवा माफिक न हो तो चाहत का गुल खिलता नहीं
कितनी भी कोशिश तुम करोकि साथ में चलते रहें
हमसफर ही साथ न दे तो मुसाफिर क्या करे
साथ चलने के लिएपड़ता है स्वार्थ छोड़ना
कुछ भी करना लेकिन कभी अपनों का दिल न तोड़ना
साथी के जीवन चित्र मेंचाहत की उसके रंग भरो
पहले खुशियां दो उसे फिर अपने लिए आशा करो।
शिशिर “मधुकर”
Nice poem .reality of life
Thanks Kiran ji for the appreciation.
pehle aap kisi ko payar karenge tabhi koi aap se……..bahut sunder shishir ji…………………..
Thanks for your comment Maninder