मुस्काते उन मूंगे सी अधरों पे
कुछ राज़ कहीं से छलक जाते है ,
सागर सी उन नीली आँखों में
कुछ दर्द सिसक से जाते है,
आलम है फिर आज जज्बातों का
पर लब्ज कहीं सहम से जाते है ,
आँखों से ओझल उन तस्वीरों पे
फिर अश्रु कहीं से बह आते है
मुस्काते उन मूंगे सी अधरों पे ……
अजीब फलसफों में लिपटी
जिंदगी कहीं बिखर जाती है ,
अतीत को मुकर जाने से फिर आज
ये मन कुछ कतरा से जाते है
बयार हकीकत की एक पल को
सहज स्वीकार नहीं कर पाते है,
जाने फिर कब लौटेंगे वो दिन ,
उम्मीद में आँखे तरस जाती है,
चाहे स्नेह आलिंगन हर पल ,
उनका, जिनसे सितम छिप जाते है ,
मुस्काते उन मूंगे सी अधरों पे ….
चाह नहीं उस जीवन दर्पण की
जिनमे प्रियवर के बिम्ब ना हो ,
परित्यक्त किये है हर उस मोती को
जिनमे प्रियवर नजर नहीं आते है
अँखियाँ सपन संजोती उस पल का
जिस पल में प्रियवर मिल जाते है,
बिन आयुष एक पल जो उनके मै सोचूँ
जीवन -सरस वहीँ पे थम जाते है ,
मुस्काते उन मूंगे सी अधरों पे …….
बहुत अच्छे !!
धन्यवाद मित्र …
अच्छी कविता
Dhanyawad sir.