क्या कहें अब तुम्हे तो बस कौम दिखाई पड़ती है
काश की पूरा हिंदुस्तान दिखाई देता
शायद ऐसी आँखें न हो तुम्हारे पास तो क्या हुआ
किसी हकीम की तरह नब्ज पकड़ कर उसका हाल तो जान ही सकते थे
खैर छोडो क्या कहें अब
ग़ालिब ही ठीक बयां करते थे
की कौमें बादशाहों से नही आवाम से बना करती हैं
हम आपस मैं जिरह न करते तो ये मुल्क कुछ और होता
…………………शिशु ……………………………..
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