न पूछो मेरी महफूजियत का आलम
तेरी दुआओ से मेरी जिंदगी चलती है !मुख से हटे नकाब चाँद रोशन हो जाए
जब झुके तेरी नजर लगे शाम ढलती है !हमने तो कर दिया खुद को हवाले तेरे
जब तक है तू साथ, ये नब्ज चलती है !होती है रुसवा तेरी परछाई जब जब
लगे जिस्म से अब जान निकलती है !टूट जाती है उम्मीदे जीने की जमाने में
तब एक तू मेरे जीने की वजह बनती है !इस कदर शामिल है तू मेरी जिंदगी में
जैसे सागर में लहरे टूट के बिखरती है !कौन कहता है “धर्म” मुर्दो में जान नही होती
एक तेरे सहारे ये जिन्दा लाश चलती फिरती है !!डी. के निवातियाँ _______###
Nice line …..
धन्यवाद !!
शुक्रिया !!
Very touching
शुक्रिया !!
अच्छी रचना मित्र ..
शुक्रिया !!
अच्छी रचना है
रंग और अन्जान शब्द दोहे मे उपयोग करने मे कितनी मात्रा गिनी जायेगी क्रिपा कर के जानकारी दीजिये …
प्रिय अनुज,
दोहे के बारे में जितना मुझे जानकारी है उसके अनुसार शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता है.जिसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं ! एक को सम और दूसरे को विषम कहा जाता है ! विषम की कुल मात्रा 13 तथा सम की कुल मात्रा 11 होती है.
मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है. !
धन्यवाद !!