जब दिल में दर्द ना उठे और आँख भी रोती नही
ऐसे रिश्तों की जहाँ में कद्र फिर होती नही
सारी उम्र ऐसी मोहब्बत हम सदा ढूँढा किए
समझे हैं अब बनते हैं रिश्ते केवल मतलब के लिए
मिलते थे जबदिल से ये दिल वो ज़माना और था
जाने कभी का खत्म हुआ जो इंसानो का दौर था
अब मशीने दौड़ती है जिन्दगानी भागती है
और एक कोने मं पड़ी उल्फत अकेली कांपतीहै
अब भी समय है स्वार्थ छोड़ो मिल बैठक रिश्ते संभालो
बुझ रहीं है लौए जिनकी फिर से वो दीपक जला लो
शिशिर “मधुकर”
उम्दा लेखन कार्य….
Thank you Ravi for reading and commenting on this work.