बैठ गया ब्लू लाइन मेट्रो पर
सुबह-सुबह जाना था आगे
पहुंचे स्टेशन पर भागे-भागे लम्बी लाइन लगी थी
सबको ही जल्दी थी
टोकन के लिए आगे खिसके
लाइन में खड़े लोग भड़के
मजबूरी में दस मिनट लगाया
फिर चेकिंग के बाद एंट्री पाया
सोचा लिफ्ट में घुस जाता हूँ
बिना मेहनत प्लेटफॉर्म पर चढ़ जाता हूँ
लिफ्ट में कुछ बुजुर्ग आये
मुझे दो-चार जुमले सुनाये
कहा, तुम तो हो अभी जवान
सीढ़ियों से जाओ और हमें न करो परेशान
ओवरलोड थी लिफ्ट, मन मसोस उतर गया
सीढ़ियों से जाकर पीली लाइन पर अकड़ गया
बेमिसाल टेक्नोलॉजी और थी साफ़-सफाई
दिल्ली में सबकी तरह मेट्रो मुझे भी भाई
ट्रेन आयी, मैंने पहले ही डब्बे में छलांग लगाई ये लेडीज डब्बा है, औरतें चिल्लाई
मैंने दरवाजे पर खड़े जोड़ों के बीच से राह बनाई
फिर धक्कम-धुक्की के बीच हो गया खड़ा
इधर उधर, हिलते डुलते गाड़ी आगे बढ़ी
एक-एक स्टेशनों पर भीड़ और भी चढ़ी
बीच-बीच में आती रही आटोमेटिक आवाज
लोग आते रहे, जाते रहे जैसे पंछी करें परवाज
तभी मेरा पर्स – मेरा पर्स, कोई जोरों से चिल्लाया
किसी जेबकतरे ने उसका बटुआ उड़ाया
कोई दांव चलते न देखकर उसने गुहार लगाई
पर्स के पैसे रख लो, उसमें पड़े डॉक्युमेंट्स दे दो भाई
पर वह बिलबिलाता रहा लगातार
आस-पास के चेहरों को घूरता रहा बार – बार
लेकिन, मेट्रो अपनी रफ़्तार से चलती रही
एक के बाद दुसरे पड़ावों को पार करती रही
मैं भी अपने स्टेशन पर उतर गया
काम निबटाते-निबटाते शाम का पहर गुजर गया
लौटने की बारी थी
फिर मेट्रो की सवारी थी
ऑफिस से थके लौटते लोग
बात-बेबात पर भिड़ते लोग
मुंह की बदबू फैलाते लोग
सुख-दुःख की बतियाते लोग कुछ कम भीड़ होने पर एक कोने में नजर गई
खुलेआम दृश्य, इमरान हाशमी की याद ताज़ा कर गई
एक दूसरी सीट पर प्रेमिका का थामे हाथ
मनुहार कर रहे प्रेमी के चेहरे पर थे कई भाव साथ-साथ
– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’, नई दिल्ली.
Poem on Delhi Metro in Hindi
Keyword: chor, delhi lifeline, Delhi metro, dilli metro par kavita, DMRC, hard work, jebkatre, labor, love birds in metro, metro, poem on metro, senior citizens in metro, thief, travel, yatra
मैं पिछले 8 साल से वेबसाइट, सोशल मीडिया के क्षेत्र में अपनी सेवायें दे रहा हूं। एक कलमकार हूं जो लेख, कहानी, कविता इत्यादि विधाओं में लिखता हूं।
फोन नं.: 9990089080
मेल: [email protected]
वेब: www.mithilesh2020.com
Theek hai
धन्यवाद 🙂