कहते हैं आजादी आधी रात को मिली थी
पर सुबह के सूरज का इंतजार अभी बाकी है…..
…
सुना है खून बहाया था नौजवानों ने
हर लहू की बूँद का कर्ज चुकाना अभी बाकी है…..
…
भगाया था जिन अंग्रेजों को अपने दम पर
तो क्यों अंग्रेजियत से छुटकारा पाना अभी बाकी है…..
…
अपनी शक्ति का लोहा दुनिया को मनवाया है
पर माँ बहनों की आबरु बचाना अभी बाकी है….
…
पहुँचने को तो पहुँच गये हैं हम चाँद और मंगल तक
पर हर गरीब के घर में चूल्हा जलाना अभी बाकी है…..
…
मनाये जरुर जश्न आजादी का खूब जोर शोर से
पर कुछ कुर्बानियों पर आँसू बहाना अभी बाकी है….
…
कहते हैं आजादी आधी रात को मिली थी
पर सुबह के सूरज का इंतजार अभी बाकी है…..
सुन्दर रचना
Good poem
रचना बहुत अच्छी है !
मैंने भी इस शीर्षक पे रचना लिखी थी संयोग से पंक्ति “पहुँचने को तो पहुँच गये हैं हम चाँद और मंगल तक” हूबहू मिलती है !!