ब्रह्मराक्षस को आज,मैंने देखा
खड़गपुर की सड़क पर!
यह वह नहीं जिसे
मुक्तिबोध ने अँधेरे तालाब में बन्द किया था।
परंतु, यह भी उन्ही परिस्थितियों से पैदा हुआ।
जिससे न जूझ सकने के कारण
ब्रह्मराक्षस ने अपना शरीर छोड़ा था
वह मरा था।
वह मरा था,
उसकी आत्मा जिन्दा थी
यह तो स्वम् ही जिन्दा है
इसकी सांसे भी है,शरीर भी
आत्मा भी जिन्दा है कोशिशे जारी है
यह तो वह है जो न मरता है
और न जीत ही है
यह वह है जो आज भी लड़ रहा है
बदलने के लिए (भारत के समाज को)
उस स्वप्न को साकार होते देखने के लिए
जो मंटो ने देखी थी।
जो आज भी परियों की ख्वाब सी है
यह तो वह है जिसे तालाब में भी जगह नही मिली।
रोशनी जी बहुत अच्छा लिखती है आप , ऐसे ही लिखते रहिये !!
धन्यवाद सर
बहुत खूबसूरत !!
धन्यवाद सर
आज के समाज और राजनीति पर सटीक वयंग्य किया है रौशनी जी आपने । आपकी लेखनी में ताकत । कितने सरल शब्दों में आप अपनी बात कह देते हो । बहुत खूब । हमें अगले भाग का इंतज़ार रहेगा