बीत गया सो बीत गया
सोच सोच क्या होना है
लगता है सब बस में है
पर यह ख्वाब सलोना है
होता अगर सब बस में तो
क्या याद प्रभु की आती हमको
अपनी याद दिलाने को
करता वोः नए बहाने है
जो होता है सो होने दो
क्या लेना और क्या देना है
प्रभु चरणो में जाना है
और अपना शीश नवाणा है
कुछ भी नहीं है बसमें अपने
भला फिर क्योँ घबराना है
उसके रचाये खेल को
कब हमने पहचाना है
दुनिआ के रंगों में फँस
माया को ही सच तो माना है
रह कर उसके चरणो में
पुष्पों का हार चढ़ाना है
नहीं है कुछ बस में हमारे
खुद को ही समझाना है
सोच सोच क्या होना है
समझे थे सब बसमें है
पर वोः ख्वाब सलोना है
अच्छी रचना !!
Thank u Nivatiyan ji
निवतियाँ जी धन्यवाद