दोस्ती में झगडे का ये अफसाना क्या है,
नही समझता है जब कोई तो फिर समझाना क्या है,
कहतें हैं धागा टूटे तो गांठ पड जाती है,
यही सोच लिया तो उलझे धागों का सुलझाना क्या है,
कहते थे दोस्ती के नाम जान हाजिर है,
भूल गए जब कसमें तो फिर कसमें खाना क्या है,
भूल गए वो देर रात तक मयकदे में मय पीना,
जहां दरिया कम पडता था तो फिर पैमाना क्या है,
कहता है योगी यारो फिर से गले मिलो,
जो हो गया सो बीता उसको दोहराना क्या है,
nice one
thanks nikhil
very nice poem
Thanks a lot.