खड़ी कर दो
दीवारें !!
शत सहस्र कोटि
खड़ी दीवारों को
और ऊँचा कर दो
दीवारों पर दीवारें लगा दो
बिखरा दो काँटे भी
राह में जितने !
खाइयाँ खोद दो
कंकड़ पत्थर भी
गिरा दो अगर
तब भी –
मुझे चलना होगा
हर तूफ़ान के संग संग
ढलना होगा
और – ढल ही जाऊँगा |
मैंने नसों में संकल्प रखा है
मैंने पीड़ा को हँसके चखा है
मैं करता हूँ नित
अभ्यास छलांग लगाने की |
मैंने अपने तलवों को
पत्थर सा कर लिया
अपनी छाती को
उभारों को सख़्त कर लिया
दर्द से मुक्त कर लिया
कंधों को अपने
वजनदार कर लिया
अंतर पाटने का
हुनर आ गया है अब
जान गया हूँ मैं
उखड़ती साँसों को संभालना
पहचान गया हूँ मैं
है सामर्थ्य मुझमें भी
सतत है अब
मेरी गति-शक्ति
आदि है मेरे कदम ||
रचनाकार :- महेश कुमार कुलदीप ‘माही’