दीवानी हूँ मैं चांदनी रात की
हूँ दीवानी भीगी बरसात की
चंचल नदियां बहते झरने
दर्शाते हैं ज़िन्दगी की रफ़्तार भी
नील गगन में उड़ते पंछी
देते हैं सव्च्छंदता आभास भी
कभी जाती है नज़र ,पहाड़ों की तरफ,
मिलता है बुलंदियों का अहसास भी.
नहीं अधूरा कुछ भी कहीं ,
सम्पूर्ण अपने आप में सारा ये संसार भी.
है दीवानी हर नज़र ,तेरे ही दीदार की.
छुपा रहता है तूँ ,
और करता है मिलने की बात भी.
हर इशारा तेरा
जगाता है मीठी प्यास भी,
पहुँच पाएंगे कभी जो तुम तक हम,
देते हो हरपल यह अहसास भी
हाँ सच है यह ,की दीवानी हूँ मैं.
दिखाई देते हो बसे, कण कण में तुम.
फिर भी न जाने क्यों
रहती है हर पल मिलने की आस भी.
Nice poem . Keep it up.
Thanks chandler bhushan ji
Nice
Thank u Anuj ji
Thank u Bhusan ji
Emotional expression. .. beautiful.
Thank u Chirag ji