वहीं तो है
जो रहते है हर दम
सीमा पर तन के
हो प्राप्त वीरगति को
खातिर वतन के
दिवाली पर होली
खेलते जी रण में
जिनके लहू की क़ुरबानी
होती हर क्षण में
नित संग्राम करें जो
लहू के कूप भरें जो
ऐसे रणप्रेमी वहीं तो है
रणांगण प्यार जिनका
वही जिनका संसार है
खौलता लहू है जिनका
विष जिनका आहार है
हथियारों के खिलौने
रखते जो हाथो में
ताकि सोएं चैन से हम
जगते वो रातों में
जीवित रहें जतन पर
त्यागें प्राण वतन पर
ऐसे रण प्रेमी वहीं तो है
तुषार गौतम “नगण्य”
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
धन्यवाद
bhut bhut shaandaar