मै खड़ा था तन्हा एक तरफ
तू खड़ी थी तन्हा एक तरफ
और था जमाना खड़ा एक तरफ
तू जो मुझको पुकारती जोर से
मै हो जाता फट से तेरी तरफ
अब तू ही मेरा किस्सा बन
मै हो जाता हूँ एक गजल
युँ मै एक हकीकत हूँ
कोई गजल नहीं
मेरी अपनी है शख्सियत एक तरफ
मै खड़ा था तन्हा एक तरफ
तू खड़ी थी तन्हा एक तरफ
और था जमाना एक तरफ
फिर उससे मिला मै सौ एक बार
हर लम्हा एक तरफ
मै कुछ बेहतर ढूंढ रहा हूँ
घर में हूँ पर घर ढूंढ रहा हूँ
नींव का पत्थर ढूंढ रहा हूँ
जाने किसके काँधे पर अपना
सर ढूंढ रहा हूँ
मेरे कद के साथ बढे जो हरदम
ऐसी चादर ढूंढ रहा हूँ
कनक श्रीवास्तवा
बहुत अच्छी कविता लिखी आप ने इनके ।carry on.
सुन्दर !!