हक़ीक़त जहां की ……………
१ मैं अपने अपनों का गम खा रहा था
भूल गया था मौत सबकी आती है
२ वो मुझसे बार बार जात पूछ रहा था
पर उसे दिखा नहीं इंसान की औलाद हु
३ धरती को जन्नत बनाने बनाया था इंसान को
वही खुद की खिदमद कर जन्नत मांग रहा है
४ दरगाह पर चादर चढ़ाने सारा आलम जा रहा था
पर मुझे ठिठुरता हुआ किसी ने ना देखा
५ मंजिल को धुंध रहा था मैं अपनी लकीर में
तो मुकाम के नाम पर कब्रिस्तान लिखा था
६ ज़िंदगी भर गुरुर रहा मुझे अपने रुतबे का
मेरी अपनी मौत पर गैरो ने उठाया था
७ मेरे ज़नाज़े की महफ़िल में मेरे अपने आये थे
पूछ रहे थे वक़्त कितना और है दफनाने में
८ जब सारे सगे मुझे गड्डे में दाल रहे
मौत का फ़रिश्ता तब मेरे साथ था
तुषार गौतम “नगण्य”
Lajavab Gautam ji
dhnywaad…