मेरी माँ ………………………….
अंधेरो में तूने ही तो था दिखाया रास्ता
जब रूठी ज़िंदगी थी तू थी साथ मेरी माँ
इस दुनिया ने भी मुझको बेसहारा किया
मेरी माँ तूने ही तो हरदम सहारा दिया
हाथो की लकीरो ने भी जब मुझको छोड़ा था
सारे अपनों ने मेरा जब भरोसा तोडा था
जो थी मंजिल ज़िंदगी की वो भी मुझको छोड़ गई
सारे अरमा सारे सपने वो मेरे तोड़ गई
तप रहा था जल रहा था जिस जलन से मेरी माँ
तूने मुझको यह संभाला उस तपम में मेरी माँ
इस वक़्त की करवटों में हर वक़्त के एहसास में
हे माँ तू ही रहे हर लम्हा पास में
मेरी माँ………………………….
तुषार गौतम “नगण्य”
अच्छी कविता !!!
एक ऐसी कविता ” मा कुछ ऐसी होती है ” मै भी लिखा हूं ! समय मिला तो जरूर पढियेगा !!
धन्यवाद अनुज जी
आपकी कविता भी पढ़ी बहुत सुंदर चित्रण किया है आपने माँ का
I like it .maa se badh ka right koyee nahi
ji kiran ji bhut shi khaa aapne