छुपा गई वो आँख में जो नमी थी |
ये हुनर था उसका या बेबसी थी ||
न बजी थाली न मंगलाचार हुआ,
मातम माना उत्सव बेकार हुआ,
वो बेटा नहीं लड़की बन जन्मी थी |
छुपा गई वो आँख में जो नमी थी ||
याद नहीं माँ ने कब पुचकारा था,
कब चूमे थे गाल कब दुलारा था,
पर याद है जब-जब तन्हा जली थी |
छुपा गई वो आँख में जो नमी थी ||
बिना अपराध सजा वो पाती रही,
पेट के लिए बचा-खुचा खाती रही,
हर दर्द सहकर भी सदा वो हँसी थी |
छुपा गई वो आँख में जो नमी थी ||
कच्ची उम्र में दान हुई ब्याही गई,
हाड़-मांस के पुतले सी चाही गई,
यही उसकी किस्मत और ज़िंदगी थी |
छुपा गई वो आँख में जो नमी थी ||
:- महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
सही अर्थो में पहचान ।
मार्मिक रचना महोदय।
शुक्रिया ! चिराग राजा जी , ललित कुलदीप जी |
कहीं न कहीं अभी तक भी लड़कियों को लड़कों से कमतर समझा जाता है जोकि सरासर गलत है |