मैं मधु , निकास मेरा मधुशाला
मैं खुला दूँ अच्छे-अच्छो के
मुख का ताला ,
कोई कहे शेरनी का दूध
कोई कहे लाल पानी और खून ,
मेरा करना चाहे सभी पान
सुरा भी है एक है मेरा नाम ,
मेरा ग्रहण करते ही लोग
पहलवान विद्धवान बन जाए ,
बुढ़े पर जवानी छाए
कई लोग टी.टी. कहलाए,
मैं बना दू विगड़े काम
और विगाड़ दूँ बने काम।
शुक्रचार्य गुरु महान
संजीवनी विधा का था जिन्हें ज्ञान ,
जिनकी कृपा से वृहस्पति पुत्र
ने प्राप्त किया यह वरदान,
शुक्रचार्य ने कहा –
“मधु सेवन से नहीं होगा
किसी का भला या कल्याण ”
कलयुग का हु मैं निवास स्थल
मैं मधु , निवास मेरी मधुशाला।
प्रस्तुतकर्ता नरेन्द्र कुमार