जिन्द्गी में कुछ बनना चाहता था
न बन पाया
हालात बदले ही नही
कुछ न कुछ सामने आ जाता है
फिर भी कोशिश जारी हे
हौसले छोड़े नही
थक भी जाता हुं, रुक भी….
फिर भी गाड़ी चलाता हुं
कभी कभी अपने ऊपर सन्देह भी आता है
क्या हुनर है आखीर मुझ मैं?
ताकि मैं दुनिया के सामने आ सकु?
मैं तो एक एकदम साधारण सा जीव हुं
आखिर मेरे अन्दर भी कुछ प्रतिभा है कि नहीं?
है भी तो क्या?
डगमगा जाता हुं
मेरे भावनाओ में जैसे कुछ निरंतरता ही नहीं है
अभी ये सोछा तो कभी वो….
काम भी अक्सर आधे अधुरे छोड़ देता हुं
तो क्या खाख मैं जिन्द्गी में कुछ बन पाउंगा?
नहीं, जरुरते बहुत ज्यादा है….
करना पड़ेगा, कुछ भी…..
ये जो लम्हें मैं बिता रहा हुं
नाजुक है, बहुत नाजुक
पार पाना बहुत मुश्किल
सहारा नही, न है प्रेरणा
साधन नहीं, समय भी कम
धैर्य भी साथ छोड़ना चाहता है
अरमाने अब भी जीवित है मन में
सोछा….
बहुत सोछा….
आ जा के जैसे मुझे कुछ सुझा
कितना सक्षम हो पाऊ मुझे पता नहीं
आशा कि दीपक फिर से जलाया
कागज लिया, कलम लिया
और लिख डालि कुछ पंक्तियां……..
-किशोर कुमार दास
हिन्दी साहित्य परिवार मे आप का स्वागत है !!
dhanywad.
bohut bohut shukriya swagat karne ka anuj ji
anuj ji…apna nam rachanakar ke list me kaise laya jai? maine apna nam aur pata hindi me likh ke [email protected] pe mail kar diya…par list me nam aya nehi…kitne din lagte hai aise? kya aap jaante hai? kripya marg darshan kijiye…
Intajar kariye ho jayega !!!
Jaroora padane pe ९१५८६८८४१८
Phone kare…
Ji bohut bohut shukriya…jarur phone karenge agar kuch paresani ho to..bewajah aap ko taklif na denge…