एक पल के लिए भी तू मुझसे जुदा न था |
ये दिल किसी और के हाथ बिका न था ||
सजदे किए तेरी महफ़िल में बार-बार मैंने,
एक तेरे सिवा दिल का कोई खुदा न था ||
तुमसे बिछड़ कर जीना मेरी मज़बूरी थी,
वरना मैं तो एक मुर्दा था जो बस जला न था ||
कुछ था कि झुक गए हम चंद चेहरों के सामने,
मुमकिन है कि मेरी तरह तू भी बेवफ़ा न था ||
मर गया था गैर की मेहंदी तेरे हाथों में देखकर,
सिर्फ जनाज़ा मेरा तेरी डोली के पहले उठा न था ||
शायद तू ही बेखबर बेदर्द बेकदर था ‘माही’,
वरना इस दीवाने की याद में पूरा शहर सोया न था ||
:- महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
+918511037804
जयपुर, राजस्थान
दर्द की अभिव्यक्ति भावुक रूप से कि है, श्रीमान। अति उत्तम।।
शुक्रिया श्रीमान चिराग राजा जी !
दर्द है ही वो असर जो हर लम्हे में ढल जाता है |