मैने पूछा ग़ुलाब से ,
कैसे तू बनी इतनी लाल?
ग़ुलाब ने हौले से मुस्का कर कहा,
“मुझे देख आशिक़,
पाते नही अपने दिल को संभाल I
उछाल देते है दिल मुझ पर,
जो मेरे ही कांटो के जाल मे उलझ कर,
हो जाते है, लहुलुहान I
और उसी के रक्त से कर मैं स्नान ,
बन गयी हू, इतनी लाल !”
-पार्थ