क्या लिखूं ?–अनुज तिवारी
इस धरती मेलिखने को तो बहुत कुछ है
पर समझ मे नही आत क्या लखूं ?
कभी भावो मे कमी है , कही भावो मे नमी है !
कभी लगता है भगवान राम की मर्यादा लिखूं ,
कभी लगता है भरत का वो कायदा लिखूं !
कभी लगता है खूबसूरत मथुरा व्रन्दावन लिखूं ,
कभी लगता है नटखट कान्हे का बालापन लिखूं !!
कभी लगता है आदिकाल हडप्पा संस्क्रति के वारे मे लिखूं कभी लगता है वहां उकेरी गई स्म्रति के वारे मे लिखूं !
कभी सोचता हूं हरीशचन्द्र के वारे मे लिखूं ,
उनकी सच्चाई और नेक दिल इन्सान के वारे मे लिखूं !!
सोचता हूं ब्रिटेन और यूनानी काल पे उपन्यास लिखूं ,
सोचता हूं विडम्बनाओ से भरा इतिहास लिखूं !
कभी सोचता हूं अशोक और चौहान की कहानी लिखूं
कभी सोचता हूं सिकन्दर का सफर तूफानीलिखूं !!
कभी लगता है हिटलर की क्रूर कथाये लिखूं ,
कभी लगता है अकबर की वीरगाथायें लिखूं !
कभी लगता है शाहजहां की निशानी लिखूं ,
कभी लगता है ताजमहल की कहानी लिखूं !!
कभी लगता है मक्का मदीना पे आदर लिखूं ,
कभी लगता है दरगाह की वो चादर लिखूं !
कभी लगता है औरन्गजेब का निवाला लिखूं ,
कभी लगता है शिवाजी का भाला लिखूं !!
कभी लगता है महाराणा की घास की रोटी लिखूं ,
कभी लगता है गांधी के खादी की धोती लिखूं !
कर्जन , लार्ड डलहौजी को दगावाज लिखूं ,
कभी लगता मन्गल पाण्डेय का आगाज लिखूं !!
कभी लगता रानी लक्ष्मी बाई को मर्दानी लिखूं ,
कभी लगता भगत सुखदेव की कहानी लिखूं !
दधिच और कर्ण को महा दानी लिखू ,
टीपूसुल्तान की तलवार खान्दानी लिखूं !!
कभी लगता है विवेकानन्द का आदर्श लिखूं ,
कभी लगता है जयप्रकाश का संघर्श लिखूं !
कभी लगता भारत की जन्नत काश्मीर लिख दूं
या जम्मू काश्मीर को अपनी जागीर लिख दूं !!
कभी लगता है लाल बाल पाल पे मिशाल लिख दूं ,
जामा मस्जिद हाजीअली पे कब्बाल लिख दूं !
अतल जी का वो अटल इरादा लिख दूं
जी करता है मोदी जी का वो वादा लिख दूं !!
Jo bhi likha hai dil ko chhuta hai.
Likhte to bahut hai magar.
Isme kuchh to anutha hai.
Kavita me raani ko bhi yaad kiya .
Yaad vivekanand bhi aaye.
Maharana ko bhi yaad kiya.
Yaad harischad bhi aaye.
Sach kahu is Kavita me
Aapne bahut kuchh hai dikha diya.
Jivan me gir ke uthne ka salika
Sikha diya.
Koi bana hai is duniya me
Koi kahi par tuta hai.
Punit dwivedi’vishnu’.thank you
Sukriya Punit Ji