ज़िन्दगी ने एक तकल्लुफ उठाई …
ज़हन में उठे इरादों पे एक योजना बनाई ….
मुद्दतों बाद मंजिल ढूढ़ने की ख्वाहिश जगी …
तो सोचा एक नये सफ़र की शुरुआत करूँ ….
फिर क्या …
ख्वाबों का मुसाफिर बन मैं निकल पड़ा ….
अपने कारवां की तलाश में निकल पड़ा…..
कोशिश तो पहले भी की थी मैंने …
पर कुछ वज़ह से मुक्क़म्मल ना हो पाया ….
ओहदे और सिफ़ारिश की कमी थी …
शायद उस वक़्त तक़दीर भी खफा थी ….
ज़माने के सितम से बर्बाद था …..
पर मैं परिंदा अपनी खुद की ज़िन्दगी के लिए आबाद था ….
अँधेरे की बत्ती बुझाकर…..
मुकदर में रोशनी की तलाश करने निकल पड़ा ….
ओहदा और सिफ़ारिश का वो औज़ार ढूंढने निकल पड़ा……
कैदखाने से बाहर आकर …
अपनी राहों की दीवार तोड़ने निकल पड़ा …..
नाइंसाफ़ी का सेहरा उतारकर ….
दिल में इन्साफ की आरज़ू लिए निकल पड़ा ….
ख्वाबों का मुसाफिर बन मैं निकल पड़ा ….
अपने कारवां की तलाश में निकल पड़ा …..
Aap ka Nam Rachanakaro ki suchi me hone ke bad bhi aap agyat kavi pe kyu public kar rahi hai .
Bymistake post ho gya