Homeचंद्र रेखा ढडवालपिता-3 पिता-3 शिवम चंद्र रेखा ढडवाल 22/02/2012 No Comments पिता (तीन) पिता ! मेरी आँखें तो खोजती रहीं केवल तुम्हें दिन ढले आँखों की फैली-फैली आँखों की लाली में दहाड़ती आवाज़ की भयावहता में माँ की पीठ पर पड़ती सटाक की आवाज़ में और सुबह- सुबह रात की ख़ुमारी से उत्पन्न उनींदेपन में कौंधती बेआवाज़-सी पहचान में. Tweet Pin It Related Posts दलित उस युद्ध को लेकर मेरी ओर से ही About The Author शिवम Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.