ले चलो मेरी किस्ती को उस पार
हूँ बीच मैं फंसा हुआ, सागर मैं घिरा हुआ
उठती हुई लहरो को देख कर सिहर जाता हूँ
कोशिश करता हूँ सँभालने की मगर फिर बिखर जाता हूँ
हार गया हूँ थक गया हूँ, हो गया हूँ मैं चूर चूर
अतः समंदर, नहीं दिखाई देता, कुछ भी दूर दूर
उमड़ रहा है अतः समुन्दर जैंसे
उठता है तूफ़ान हृदय के भीतर ही वैंसे
थक गया हूँ मैं, हो गया हूँ मैं लाचार, ले चलो मेरी किस्ती को उस पार!!!!!!!!!!!!
This piece of writing has a true story behind, hope that readers may guess it. and can send their feed back to me on [email protected]