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इस जिंदगी के नजारे हमे कुछ ऐसे नजर आये !
जिसमे हम सम्भलते कभी बिखरते नजर आये !!जब न जिस्म अपना था, न ही जान अपनी थी !
फिर क्यों हम इससे जद्दोजहद करते नजर आये !!फैला दिया वक़्त ने हर लम्हे को कुछ इस तरह !
जिंदगी के हर मोड़ पे खुद सिमटते नजर आये !!क्या औकात थी किसी की जमाने में हमे खरीदे ! .
प्यार के चन्द लफ्जो में हम बिकते नजर आये !!जब सब कुछ था किसी और का “धर्म” जमाने में !
फिर क्यों सबको यंहा पर खुद लुटे से नजर आये !!
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डी.के. निवातियाँ [email protected]@@