हर ईन्सा के हर पल से मेरा पाला हैं
मेरी गती से सूरज चान्द धरा सितारा हैं
बताओ कोन भला मुझ से बच पाया हैं
राजा रंक क्या मैने संत सताया हैं
जो डरता है उसे मैं और डराता हूं
जो लड़ता हैं उसको मैं पार पहुचाता हूं
कर्मी हठी सयंमी से मै भी भय खाता हूं
पर मौका मिलते ही उसको भी मैं सताता हूं
कोई ईन्सा मुझसे भला कैसे बच सकता हैं
जबकी राम भगवान को भी मैने नही बक्सा हैं
मै तो बेजुवा जीवो को भी तड़पाता हूं
सूरज चान्द धरा पर भी मैं ग्रहण लगाता हूं
कोई गिरे कोई बढे ये रीत ही मेरा हैं
कहते हैं मुझको वक्त मेरा आकार ही घेरा हैं
बहुत अच्छी रचना है
ऐसे ही लिखते रहिये !!Ba
धन्यवाद अनुज जी