रिश्तों की गर्मी,रिश्तों की नर्मी,
कुछ जलता,कुछ पिघलता,
कुछ कसकता,कुछ रिसता,
रिश्ते जुड़ते हैं,रिश्ते बिगड़ते हैं|
गुनाहगार बनाता है एक इन्सान दुसरे इन्सान को,
परिस्थितियाँ सहयोगी हैं उसके इस गुनाह में|
पर भागीदारी चरित्र और व्यवहार की,
बताता है एक इन्सान दुसरे इन्सान की|
सत्य के आवरण में लिपटा झूठ,
यही हकीकत है आज के रिश्तों की|
इंसान बह जाता है भावनाओं में,
आज कद्र कहाँ है संवेदनाओं की|
मूर्ख कहते है लोग उस इंसान को,
जो लिपटा है आज भी रिश्तों के जाल में|
खुद को जलाकर आग में, रिश्तें निभाता है,
सच पूछो तो अपने हाथों अपनी चिता जलाता है|
आप ने बहुत अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया है
आप और भि अच्छा लिख सकते है
पर कविता लय और तुक के साथ लिखगे तो और भी अच्छा रहेगा !!A
आप ने बहुत अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया है
आप और भि अच्छा लिख सकते है
पर कविता लय और तुक के साथ लिखगे तो और भी अच्छा रहेगा !!
धन्यवाद आपके मार्गदर्शन के लिए ..
अच्छा लिखा है बस थोङा तुक नहीँ मिलता।